नवगीत छत्तीसगढ़ी

जावन दे तैं घर

छोड़ दे नोनी अब तो मोला
जावन दे तैं घर।

छेरी-पटरू लुलवावत होही
बिन चारा-पानी के
कब तक हम गोठियायवत रहिबोन
कहनी अपन जवानी के ।

अभी उमर कचलोईहा हावय
मिलबोन आगू बछर।

खेत-खार बारी-बखरी के
करना हे तइयारी
बईठाँगूर, कमचोरहा कही के
देथे दाई हर गारी।

मिहनत कर के चढ़बोन नसैनी
तब जाबोन उप्पर ।

हरहिन्छा जीनगी जीये बर
जतन करे बर परही
सोच बिचार के काम करे मा
मन के दुविधा टरही ।

बिन नेत के छवावय नही
छानी के खदर ।

2.
सावन भादों दिखथे रुख के
हरियर-हरियर पाना ।

जंगल झाड़ी, खेती-बारी
दिखथे पाटी मारे
नदिया-नरवा, तरिया-डबरा
सुग्घर रूप सँवारे।

धर किसान हर राँपा-गैंती
गावत हावै गाना।

बादर उप्पर बादर नाचे
खाँद जोर संगवारी
ढोल बजावय ढम्मक-ढम्मक
हँसय फूल-फुलवारी।

फुदुक-फुदुक मछरी नाचत हे
मेंचका मारे ताना।

तान-तान चेलिक मोटियारी
गाँवैं गीत ददरिया
गाड़ी हाँके सुर मा गड़हा
कुलकत हे नँगरिहा।

देखत हावै गाँव शहर सब
देखत हावै जमाना।

बलदाऊ राम साहू
9407650458

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